मैं सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद और आभार प्रकट
करता हूं, जिन्होंने अपना अमूल्य समय खर्च करके और ठंड में लंबी यात्रा की
परेशानियों को झेलते हुये सांपला ब्लॉगर्स मिलन में उपस्थिति दी। सुश्री संगीता
पुरी जी और श्री ललित शर्मा जी ने प्रॉक्सी अटेंडेंस भी लगाने की कोशिश की थी।
इनका फोन आना ये दर्शाता है कि इन ब्लॉगर्स का मन तो सांपला में ही है पर किन्हीं
मजबूरियों की वजह से नहीं आ पाये हैं।
कुछ लोग ऐसी ब्लॉगर्स मीट पर प्रश्नवाचक दॄष्टि रखते हैं। उन्हें मैं
बताना चाहता हूं कि ब्लॉगिंग उत्थान संबधिंत गंभीर मसलों पर विचार के लिये तो
ब्लॉगपोस्ट से बढिया क्या हो सकता है। और ये ब्लॉगर मीट तो केवल मिलने-मिलाने के
लिये ही थी। आभासी रिश्ते जब आमने-सामने होते हैं तो कितने ही वास्तविक रिश्ते फीके
लगने लगते हैं, इन रिश्तों गन्नों की
मिठास तो इन्हें खाने वाला ही जान सकता है। दूसरी बात इस मीट से पहले जिस क्षेत्र
में कोई ब्लॉग शब्द को नही जानता था, वहां से 4-5 नये ब्लॉगर्स पैदा होने के लिये
तैयार खडे हैं तो क्या ये बात हिन्दी ब्लॉगिंग के लिये बुरी है। ऐसी ब्लॉगर्स मीट
से एक उत्साह पैदा होता है, जो ब्लॉगिंग में ऊब रहे लोगों में ऊर्जा का संचार भी
करता है।
"अपने बच्चे और पडोसी की घरवाली सबको अच्छे लगते हैं"
एक
बार फत्तू चौधरी घर आये तो देखा की उनका मित्र रलदू उनकी पत्नी का आलिंगन
किये हुए है। फत्तू को देखते ही दोनों घबरा गये और सकपका कर अलग-अलग खडे हो
गये।
फत्तू चौधरी - अरे रलदू, तू भी
रलदू - नहीं नहीं॥…………
फत्तू चौधरी - अरे मुझे तो यह करना पडता है, क्योंकि यह मेरी पत्नी है, मगर तू भी इसे आलिंगन कर रहा है, तेरी क्या मजबूरी है???
कौन-कौन आ रहा है एक बार फिर से नजर मार लें और जिनके नाम निम्न सूचि में
नहीं हैं कृप्या टिप्पणी ईमेल या फोन द्वारा इन नम्बरों पर श्री राज भाटिया
जी को 09999611802 या अन्तर सोहिल
(मुझे) को 09871287912 पर अपने आने की खुशखबरी जल्द दें।
शनिवार, 24 दिसम्बर 2011 को सांपला में हास्य कवि सम्मेलन और ब्लॉगर मिलन का आयोजन किया जा रहा है। ब्लॉगर्स मिलन सुबह 11:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक और कवि सम्मेलन शाम 7:30 बजे से आरम्भ होगा। आप सबका स्वागत है। सांपला एक छोटा सा टाऊन है, जो दिल्ली - हिसार रोड (NH-10) पर बहादुरगढ और रोहतक के बीच में बसा है।
आयोजन स्थल तक आने के लिये सबसे सस्ता और सुविधाजनक वाहन रेलगाडी है। सांपला रेलवे स्टेशन से 2 मिनट पैदल चलकर आप पंजाबी धर्मशाला पहुँच सकते हैं। रेलगाडी से आने वालों के लिये दिल्ली से शकूरबस्ती, नांगलोई, बहादुरगढ से आगे सांपला स्टेशन है। दिल्ली से सडक या रेल दोनों माध्यम द्वारा अधिकतम 1 घंटे का, 45 किमी का सफर है।
आप मुण्डका तक मैट्रो रेल से भी आ सकते हैं। मुण्डका मैट्रो स्टेशन से आपको बहादुरगढ और सांपला के लिये बसें आराम से मिल जायेंगी। अपने वाहन से आने वालों को दिल्ली करनाल बाईपास या पंजाबी बाग से पीरागढी चौक-नांगलोई-बहादुरगढ के रास्ते आना है। लगभग पूरा रास्ता बहुत बढिया बना हुआ है। पंजाबी बाग से सांपला की दूरी 40 किमी और रोहतक से 23 किमी है। बहादुरगढ से निकलने के बाद आपको बायीं तरफ कनक ढाबा दिखाई दे तो समझ जाईयेगा कि आप सांपला में प्रवेश कर चुके हैं। कनक ढाबा से थोडा आगे चलते ही सांपला नगरपालिका का स्वागत करता हुआ दरवाजा दिखाई दे जायेगा। या कनक ढाबा से 2 किमी आगे आपको जो भी मोड दायीं ओर जाता दिखे, उसी पर मुड जाना है।
शनिवार, 24 दिसम्बर 2011 को सांपला में हास्य कवि सम्मेलन और ब्लॉगर मिलन के आयोजन की तैयारियां शुरु हो गई हैं। ब्लॉगर्स मिलन सुबह 11:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक और कवि सम्मेलन शाम 7:00 बजे से आरम्भ होगा। आप सबका स्वागत है। सांपला एक छोटा सा टाऊन है, जो दिल्ली - हिसार रोड (NH-10) पर बहादुरगढ और रोहतक के बीच में बसा है। सांपला आने के लिये आपको दिल्ली करनाल बाईपास या पंजाबी बाग से पीरागढी चौक-नांगलोई-बहादुरगढ के रास्ते आना है। पूरा रास्ता बहुत बढिया बना हुआ है। पंजाबी बाग से सांपला की दूरी 40 किमी और रोहतक से 23 किमी है। रेलगाडी से आने वालों के लिये दिल्ली से शकूरबस्ती, नांगलोई, बहादुरगढ से आगे सांपला स्टेशन है। दिल्ली से सडक या रेल दोनों माध्यम द्वारा अधिकतम 1 घंटे का, 45 किमी का सफर है।
यहां तक कि एक संस्था ने तो उसी दिन आनन-फानन में माता का जागरण आयोजित कर दिया और वो भी पंजाबी धर्मशाला नाम की ही दूसरी जगह पर :-) वाह! मैं जागरण वगैरा में चन्दा नहीं देता ना, शायद इसलिये। वैसे ज्यादातर सामाजिक कार्यक्रमों में उपस्थित जरुर होता हूँ। हाँ दान-दक्षिणा मैं धर्मशाला, गऊशाला आदि में सामर्थ्य अनुसार जरुर देता हूँ। प्रत्येक वर्ष वृंदावन से रासलीला दिखाने वाले भी आते हैं कार्तिक मास में, उन्हें भी सामर्थ्य अनुसार कुछ दे देता हूँ। कोशिश रहती है कि गुप्तदान दूँ और मेरा नाम ना पुकारा जाये।
खैर जब मुख्य संस्थाओं द्वारा भी कोई बात नहीं बनती दिखी तो मुझे ख्याल आया कि अपने एक-एक मित्र को सम्पर्क करके उन्हें धीरे-धीरे राजी करना होगा। सांपला में मेरे 55-60 करीबी मित्र हैं, जिनके साथ मेरे हर पारिवारिक समारोह में निमंत्रण रहता है, और उनके पारिवारिक समारोहों में मैं निमंत्रित होता हूँ। करीबन भाई के भी 25-30 मित्र ऐसे ही हैं। मैनें एक-एक मित्र को सम्पर्क किया और इस आयोजन के लिये उनके विचार जानने की कोशिश की। इन कोशिशों में 3-4 मित्र ऐसे मिल गये जो कि बहुत उत्साहित हो गये और मुझे आगे बढने के लिये प्रेरित किया। उन्होंने मुझे भरोसा दिया कि तुम पैसे की चिंता मत करो और अगर हम 5 सदस्य भी हैं तो यह प्रोग्राम जरुर होगा। खर्च का तकरीबन 75000 रुपये का अन्दाजा लगाया गया। धीरे-धीरे कुछ और लोग भी जुडे और हमारी दस सदस्यीय टीम बनकर तैयार हो गई। शुरु से ही एक विचार हम लोगों के दिमाग में था कि हम चन्दा किसी से नहीं लेंगे और मुख्यातिथि से भी कुछ नहीं लेंगे। कुछ मित्रों ने केवल आर्थिक सहयोग देने की बात की और कार्य सहयोग के लिये उपस्थित होने में असमर्थता जताई, उन्हें मैनें इस मंच का सदस्य नहीं बनाया और कोई आर्थिक सहयोग नहीं लिया। दूसरे लोगों की देखादेखी कुछ मित्रों ने अपना नाम लिखवा दिया, तो उन्हें बाद में हटाना पडा। क्योंकि मैं केवल उन्हीं मित्रों को इस मंच से जोडना चाहता था जो सबसे पहले मन से साथ हों फिर तन से। क्योंकि धन की व्यवस्था की अब समस्या नहीं रह गई थी। 2-3 मित्र आर्थिक सहयोग नहीं दे सके, लेकिन मन और तन से मेरा पूरा साथ दिया।
इस वीडियो में श्री यौगेन्द्र मौदगिल जी, अलबेला जी और सांपला सांस्कृतिक मंच के सदस्य मंच पर और वीडियो के आखिर में आपका फटीचर, जिसे अलबेला जी ने धन्यवाद करने के लिये आगे बुला लिया और फटीचर कैसे कन्फ्यूजिया गया है। आज तक मंच पर बोलना तो दूर कभी खडा भी नहीं हुआ था और यहां>>>>>
मेरी किसी से कभी लडाई-झगडा तो क्या तू-तू मैं-मैं तक नहीं हुई है। बल्कि मेरा परिवार भी किसी भी लडाई झगडे से दूर ही रहना पसन्द करता है। फिर भी पता नहीं क्यों कुछ लोगों को क्या जलन हुई कि उन्होंने सांपला सांस्कृतिक मंच द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन के पोस्टर और बैनर फाड डाले। एक अग्रवाल सेवा समिति वालों ने तो हमारे बैनर को फाडकर सिरसा में आयोजित किसी सभा का बैनर लगा दिया। उनके बैनर पर कोई फोन नम्बर भी नहीं था और आयोजक रोहतक से थे। सिरसा मेरे नगर सांपला से कम से कम 225 किलोमीटर दूर है। एक सज्जन जिनसे कभी किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं था उनकी दीवार पर पोस्टर चिपकाने के आधे घंटे बाद ही पोस्टर फाड दिया और दूसरे सज्जन ने अपनी दीवार पर लगाने से मना कर दिया। जबकि एक बार इनको स्टेशन पर बोझा लिये परेशान देखकर मैं उनका बोझा उठाकर उनके घर तक रखवा कर आया था।
शुरु-शुरु में मैनें काफी लोगों से बात की कि कवि-सम्मेलन का विचार कैसा है। सभी कहते कि विचार बहुत ही बढिया है, लेकिन जब उनसे सहयोग करने की बात कहता तो यही विचार एकदम से सही नहीं है, ऐसा हो जाता। यहां गैदरिंग नहीं हो पायेगी, यहां के लोग समझ नहीं पायेंगे, इतनी सर्दी में कौन सुनने आयेगा आदि। किसी ने कहा कि नये साल पर डी जे पर डांस आदि का प्रोग्राम करलो, किसी ने कहा मैजिक शो का प्रोग्राम कर लो। मैं हंसता और दूसरे सहयोगी ढूंढने निकल पडता।
सांपला में मुख्य 13 सामाजिक संस्थायें सक्रिय हैं। छोटी-छोटी तो कई सारी हैं। 2-3 संस्थायें तो बेहतरीन कार्य कर रही हैं, जो निर्धन छात्रों को शिक्षा, वर्दी, और रक्तदान, कम्बल वितरण आदि सराहनीय कार्यक्रम आयोजित करती रहती हैं। कुछ संस्थायें माता और खाटू श्याम के जागरण से आगे ही नहीं बढ पा रही हैं। इनमें से दो संस्थाओं से बात की और मैनें कहा कि आपकी संस्था आयोजक बन सकती है। कुछ सहयोग आपको देना होगा, आपके पास अनुभव भी है और मैं अकेला हूँ। आपकी संस्था का ही प्रचार प्रसार होगा, लेकिन दोनों ने हाथ खडे कर दिये। बाद में जब मुझे सहयोगी मिल गये और आर्थिक समस्या भी हल हो गई और लगभग सभी तैयारियां पूर्ण हो चुकी तो एक संस्था के अध्यक्ष यह चाहने लगे कि अब बैनर उनकी संस्था के लगा दिये जायें। उन्होंने बार-बार इशारा किया कि सांपला सांस्कृतिक मंच नया नाम होगा, तुम हमारी संस्था का नाम अपने प्रचार में रखो। :-) ये तो वही बात हो गयी जी खेल खिलाडी का, पैसा मदारी का