यहां तक कि एक संस्था ने तो उसी दिन आनन-फानन में माता का जागरण आयोजित कर दिया और वो भी पंजाबी धर्मशाला नाम की ही दूसरी जगह पर :-) वाह! मैं जागरण वगैरा में चन्दा नहीं देता ना, शायद इसलिये। वैसे ज्यादातर सामाजिक कार्यक्रमों में उपस्थित जरुर होता हूँ। हाँ दान-दक्षिणा मैं धर्मशाला, गऊशाला आदि में सामर्थ्य अनुसार जरुर देता हूँ। प्रत्येक वर्ष वृंदावन से रासलीला दिखाने वाले भी आते हैं कार्तिक मास में, उन्हें भी सामर्थ्य अनुसार कुछ दे देता हूँ। कोशिश रहती है कि गुप्तदान दूँ और मेरा नाम ना पुकारा जाये।
खैर जब मुख्य संस्थाओं द्वारा भी कोई बात नहीं बनती दिखी तो मुझे ख्याल आया कि अपने एक-एक मित्र को सम्पर्क करके उन्हें धीरे-धीरे राजी करना होगा। सांपला में मेरे 55-60 करीबी मित्र हैं, जिनके साथ मेरे हर पारिवारिक समारोह में निमंत्रण रहता है, और उनके पारिवारिक समारोहों में मैं निमंत्रित होता हूँ। करीबन भाई के भी 25-30 मित्र ऐसे ही हैं। मैनें एक-एक मित्र को सम्पर्क किया और इस आयोजन के लिये उनके विचार जानने की कोशिश की। इन कोशिशों में 3-4 मित्र ऐसे मिल गये जो कि बहुत उत्साहित हो गये और मुझे आगे बढने के लिये प्रेरित किया। उन्होंने मुझे भरोसा दिया कि तुम पैसे की चिंता मत करो और अगर हम 5 सदस्य भी हैं तो यह प्रोग्राम जरुर होगा। खर्च का तकरीबन 75000 रुपये का अन्दाजा लगाया गया। धीरे-धीरे कुछ और लोग भी जुडे और हमारी दस सदस्यीय टीम बनकर तैयार हो गई। शुरु से ही एक विचार हम लोगों के दिमाग में था कि हम चन्दा किसी से नहीं लेंगे और मुख्यातिथि से भी कुछ नहीं लेंगे। कुछ मित्रों ने केवल आर्थिक सहयोग देने की बात की और कार्य सहयोग के लिये उपस्थित होने में असमर्थता जताई, उन्हें मैनें इस मंच का सदस्य नहीं बनाया और कोई आर्थिक सहयोग नहीं लिया। दूसरे लोगों की देखादेखी कुछ मित्रों ने अपना नाम लिखवा दिया, तो उन्हें बाद में हटाना पडा। क्योंकि मैं केवल उन्हीं मित्रों को इस मंच से जोडना चाहता था जो सबसे पहले मन से साथ हों फिर तन से। क्योंकि धन की व्यवस्था की अब समस्या नहीं रह गई थी। 2-3 मित्र आर्थिक सहयोग नहीं दे सके, लेकिन मन और तन से मेरा पूरा साथ दिया।
इस वीडियो में श्री यौगेन्द्र मौदगिल जी, अलबेला जी और सांपला सांस्कृतिक मंच के सदस्य मंच पर और वीडियो के आखिर में आपका फटीचर, जिसे अलबेला जी ने धन्यवाद करने के लिये आगे बुला लिया और फटीचर कैसे कन्फ्यूजिया गया है। आज तक मंच पर बोलना तो दूर कभी खडा भी नहीं हुआ था और यहां>>>>>
मेरी किसी से कभी लडाई-झगडा तो क्या तू-तू मैं-मैं तक नहीं हुई है। बल्कि मेरा परिवार भी किसी भी लडाई झगडे से दूर ही रहना पसन्द करता है। फिर भी पता नहीं क्यों कुछ लोगों को क्या जलन हुई कि उन्होंने सांपला सांस्कृतिक मंच द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन के पोस्टर और बैनर फाड डाले। एक अग्रवाल सेवा समिति वालों ने तो हमारे बैनर को फाडकर सिरसा में आयोजित किसी सभा का बैनर लगा दिया। उनके बैनर पर कोई फोन नम्बर भी नहीं था और आयोजक रोहतक से थे। सिरसा मेरे नगर सांपला से कम से कम 225 किलोमीटर दूर है। एक सज्जन जिनसे कभी किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं था उनकी दीवार पर पोस्टर चिपकाने के आधे घंटे बाद ही पोस्टर फाड दिया और दूसरे सज्जन ने अपनी दीवार पर लगाने से मना कर दिया। जबकि एक बार इनको स्टेशन पर बोझा लिये परेशान देखकर मैं उनका बोझा उठाकर उनके घर तक रखवा कर आया था।
शुरु-शुरु में मैनें काफी लोगों से बात की कि कवि-सम्मेलन का विचार कैसा है। सभी कहते कि विचार बहुत ही बढिया है, लेकिन जब उनसे सहयोग करने की बात कहता तो यही विचार एकदम से सही नहीं है, ऐसा हो जाता। यहां गैदरिंग नहीं हो पायेगी, यहां के लोग समझ नहीं पायेंगे, इतनी सर्दी में कौन सुनने आयेगा आदि। किसी ने कहा कि नये साल पर डी जे पर डांस आदि का प्रोग्राम करलो, किसी ने कहा मैजिक शो का प्रोग्राम कर लो। मैं हंसता और दूसरे सहयोगी ढूंढने निकल पडता।
सांपला में मुख्य 13 सामाजिक संस्थायें सक्रिय हैं। छोटी-छोटी तो कई सारी हैं। 2-3 संस्थायें तो बेहतरीन कार्य कर रही हैं, जो निर्धन छात्रों को शिक्षा, वर्दी, और रक्तदान, कम्बल वितरण आदि सराहनीय कार्यक्रम आयोजित करती रहती हैं। कुछ संस्थायें माता और खाटू श्याम के जागरण से आगे ही नहीं बढ पा रही हैं। इनमें से दो संस्थाओं से बात की और मैनें कहा कि आपकी संस्था आयोजक बन सकती है। कुछ सहयोग आपको देना होगा, आपके पास अनुभव भी है और मैं अकेला हूँ। आपकी संस्था का ही प्रचार प्रसार होगा, लेकिन दोनों ने हाथ खडे कर दिये। बाद में जब मुझे सहयोगी मिल गये और आर्थिक समस्या भी हल हो गई और लगभग सभी तैयारियां पूर्ण हो चुकी तो एक संस्था के अध्यक्ष यह चाहने लगे कि अब बैनर उनकी संस्था के लगा दिये जायें। उन्होंने बार-बार इशारा किया कि सांपला सांस्कृतिक मंच नया नाम होगा, तुम हमारी संस्था का नाम अपने प्रचार में रखो। :-) ये तो वही बात हो गयी जी खेल खिलाडी का, पैसा मदारी का