मेरी किसी से कभी लडाई-झगडा तो क्या तू-तू मैं-मैं तक नहीं हुई है। बल्कि मेरा परिवार भी किसी भी लडाई झगडे से दूर ही रहना पसन्द करता है। फिर भी पता नहीं क्यों कुछ लोगों को क्या जलन हुई कि उन्होंने सांपला सांस्कृतिक मंच द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन के पोस्टर और बैनर फाड डाले। एक अग्रवाल सेवा समिति वालों ने तो हमारे बैनर को फाडकर सिरसा में आयोजित किसी सभा का बैनर लगा दिया। उनके बैनर पर कोई फोन नम्बर भी नहीं था और आयोजक रोहतक से थे। सिरसा मेरे नगर सांपला से कम से कम 225 किलोमीटर दूर है। एक सज्जन जिनसे कभी किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं था उनकी दीवार पर पोस्टर चिपकाने के आधे घंटे बाद ही पोस्टर फाड दिया और दूसरे सज्जन ने अपनी दीवार पर लगाने से मना कर दिया। जबकि एक बार इनको स्टेशन पर बोझा लिये परेशान देखकर मैं उनका बोझा उठाकर उनके घर तक रखवा कर आया था।
शुरु-शुरु में मैनें काफी लोगों से बात की कि कवि-सम्मेलन का विचार कैसा है। सभी कहते कि विचार बहुत ही बढिया है, लेकिन जब उनसे सहयोग करने की बात कहता तो यही विचार एकदम से सही नहीं है, ऐसा हो जाता। यहां गैदरिंग नहीं हो पायेगी, यहां के लोग समझ नहीं पायेंगे, इतनी सर्दी में कौन सुनने आयेगा आदि। किसी ने कहा कि नये साल पर डी जे पर डांस आदि का प्रोग्राम करलो, किसी ने कहा मैजिक शो का प्रोग्राम कर लो। मैं हंसता और दूसरे सहयोगी ढूंढने निकल पडता।
सांपला में मुख्य 13 सामाजिक संस्थायें सक्रिय हैं। छोटी-छोटी तो कई सारी हैं। 2-3 संस्थायें तो बेहतरीन कार्य कर रही हैं, जो निर्धन छात्रों को शिक्षा, वर्दी, और रक्तदान, कम्बल वितरण आदि सराहनीय कार्यक्रम आयोजित करती रहती हैं। कुछ संस्थायें माता और खाटू श्याम के जागरण से आगे ही नहीं बढ पा रही हैं। इनमें से दो संस्थाओं से बात की और मैनें कहा कि आपकी संस्था आयोजक बन सकती है। कुछ सहयोग आपको देना होगा, आपके पास अनुभव भी है और मैं अकेला हूँ। आपकी संस्था का ही प्रचार प्रसार होगा, लेकिन दोनों ने हाथ खडे कर दिये। बाद में जब मुझे सहयोगी मिल गये और आर्थिक समस्या भी हल हो गई और लगभग सभी तैयारियां पूर्ण हो चुकी तो एक संस्था के अध्यक्ष यह चाहने लगे कि अब बैनर उनकी संस्था के लगा दिये जायें। उन्होंने बार-बार इशारा किया कि सांपला सांस्कृतिक मंच नया नाम होगा, तुम हमारी संस्था का नाम अपने प्रचार में रखो। :-) ये तो वही बात हो गयी जी खेल खिलाडी का, पैसा मदारी का
जारी …….….….
तुलसी इस संसार में भांति भांति के लोग।
ReplyDeleteसबसे हिल मिल रहिए नदी नाव संजोग॥
राम राम
जारी रखें, एक आयोजन करने में बहुत सीख मिल जाती है।
ReplyDeleteस्वामी अंतर सोहिल जी
ReplyDeleteआपके सफल आयोजन ने इन सब को, इन सब संस्थाओं को करारा जवाब दे दिया. इसलिए अब काहे का लेखा-जोखा.
गोली मारो ससुरों को....
देख लेना अगले आयोजन में ये सब तुम्हारे एक आह्वान पर लंगोट कस लेंगे...
आयोजन की सफलता के बहादुर गढ़ और रोहतक से भी समाचार मिल रहे है..
बधाई....
जिंदगी हर कदम कुछ न कुछ सिखाती है।
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कादेरी भूत और उसका परिवार।
मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।
अमित प्यारे,
ReplyDeleteहौंसला न हार, कर सामना जहान का।
विरोध करने वाले हैं तो समर्थन करने वाले भी तो होंगे? माना हम दूर हैं, पर कुछ तो असर हमारी दुआओं का होगा ही यार:)
अगर अपना अन्तर्मन सही कह रहा है तो क्षमतानुसार करते रहो, हम तो यही कहेंगे।
शुभकामनायें।
अच्छा, कवि सम्मेलन से भी इतनी ईर्ष्या! यह विचित्र देश है।
ReplyDeleteअच्छे काम में ही मुश्किलें आती हैं ..
ReplyDeleteअच्छे कामो में रोड़े डालने बहुत लोग आते हैं. बस अपना बेस्ट करते रहना चाहिए.
ReplyDeleteमत समझो अच्छी ही है,
ReplyDeleteये दुनिया ऐसी ही है....