वाकई कवियों का प्यार श्रोताओं पर कुछ जादू कर गया। 27 दिसम्बर 2014 को शाम 7:30 से शुरु हुआ कार्यक्रम रात 01:00 बजे तक चलता रहा। आखिर मैनें श्री प्रवीण शुक्ल जी को इशारा किया कि खाना खाना है, और ठंड बहुत ज्यादा लग रही है। श्रोता तो ओस से टपकते पंडाल से हिलने का भी नाम नहीं ले रहे हैं।
खैर आप तो फोटोज देखिये
No comments:
Post a Comment
आप यहां अपनी बात कह सकते हैं।
धन्यवाद